प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 28)
"अरे! ये मैं कहाँ हूँ!" अरुण के चेहरे पर तेज धूप पड़ रही थी जिसके कारण वह आँखों पर धूप के सामने हथेली कर हड़बड़ाते हुए उठा। मगर उसे अपने आसपास देखने पर गहन आश्चर्य हुआ। उसके आसपास कोई न था, हाथो में बेड़िया न थी, हालांकि वह अब भी खून से सरोबार ही था मगर उसे समझ में नहीं आ रहा था यह सब क्या हो रहा था। पास से ही टप-टप कर बूंदों का पानी में से टकराने की आवाज आ रही थी, वह तेजी से उस तरफ बढ़ता चला गया।
पहाड़ी के अगले घुमान के नीचे थोड़ा सा घूमते ही सामान्य आकर से कुंड की भांति एक जलस्त्रोत नजर आया, जिसमें ऊपर से बूंदे रिसकर टपक रहीं थी, जिस कारण थोड़ा थोड़ा पानी कुंड के बाहर बह रहा था। वह पानी हरित मिश्रित नील रंग का था, बूंदों के गिरने से उठ रहे भँवर आंखों को सुकून दे रहे थे। कुंड के सभी किनारों पर थोड़े से झुके हुए अनेकों वृक्ष थे, जिनमें से कइयों पर पुष्प लदे हुए थे। देखने मात्र से उस कुंड की तली का अंदाजा लगा पाना मुश्किल था, बार बार टपक रहीं बूंदे जब जब कुंड के पानी में गिरती तो ऐसा धुन उभरता मानो प्रकृति कोई गीत बुन रही हो! निश्छल.. निराकार.. अनन्त बिंदुओं तक यह ध्वनि अंतरात्मा को मुग्ध कर देने वाली थी।
प्रकृति की मनोहारी छटां छाई हुई थी, वृक्ष वसन्त के गीत गुनगुना रहे थे, पुराने पत्ते उन्मुक्त आकाश में उड़ने को स्वतंत्र हो चुके थे, नई कोपले फुट रहीं थीं। दूर कहीं से पपीहे की मधुर रागिनी गूंज रही थी, चिड़ियों की चहचहाहट से यह स्थान खिला हुआ सा था। जंगल के बीचोंबीच स्थित होने के बाद भी यह स्थान खतरनाक बिल्कुल महसूस न हो रही थी, दूर दूर तक पहाड़ो की चोटियां और कुछ गहरी खाइयाँ ही नजर आ रहीं थी। वातावरण में बह रही स्वच्छ वायु ने अरुण के मन मस्तिष्क को तरोताजा कर दिया, वह पानी में उतरकर अपने जख्म साफ करने लगा, और वहीं पानी में ही बैठकर जो कुछ हो रहा था उसके बारे में सोचने लगा, अभी वह किसी मासूम निरपराध बच्चे की भांति नजर आ रहा था, आँखों में कोई भाव नहीं, चेहरा भी भावविहीन था मगर हृदय अब भी भाव विह्लल था, मगर उसका उद्वेलित मन इस जल के स्पर्श से शांत हो रहा था। थोड़ी देर पश्चात वह वहां से बाहर निकला और
ऊपर कुंड के एक किनारे पर पेड़ के पास बैठ गया।
थकान और कमजोरी अब भी उसपर हावी होती जा रही थी, अरुण कभी हार नहीं मान सकता था, वह उठकर खड़ा हुआ मगर उसका शरीर अब साथ छोड़ चुका था, वह तेजी से नीचे गिरने लगा, उसने अपनी आँखों पर बहुत जोर देकर खोला, सामने एक पतली सी बेल नजर आयी, अरुण के हाथ उसकी तरफ बढ़े मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी, अरुण की आँखे दुबारा बन होने लगीं, वह छपाक के साथ उसी कुंड में जा गिरा।
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"मुझे इश्क़ तो हुआ था लेकिन, वो तो बेवफा निकली.. इतना सज धज के निकली, अरे वो तो दो बच्चों की माँ निकली!" क्रेकर पर सवार अनि जंगल में भीतर की ओर तेजी से बढ़ता जा रहा, मगर उसे ताज्जुब हो रहा था कि अब उसे कहीं भी वह काला जंगल या काला क्षेत्र जो भी था, उसे दिखाई नहीं दे रहा था। आशा से बात करने के बाद अनि काफी रुवांसे मन से बेवफाई की शायरी पढ़ रहा था।
"सर! आप आप थोड़ी देर चुप नहीं रह सकते?" ऐसा लग रहा था मानो अब तक क्रेकर भी अनि से बोर हो गया हो।
"जमाना हमसे है, जमाने से हम नहीं, जानी! जो चुप हो जाये, समझो हम नहीं!" अनि ने राजकुमार स्टाइल में डींगें हांकते हुए बोला।
"ओके सर! फिर मैं अपना वॉइस रिसीवर ऑफ कर लेता हूँ।" क्रेकर ऐसे बोला मानो वह नाराज हो गया हो।
"अरे न न! ये जुल्म न करना। अभी तो…" अनि फिर अपनी बकबकी में लग गया, तभी उसे छपाक की आवाज सुनाई दी। "तो भैया तोड़ू फोड़ू कुछ सुना क्या तुमने?" उस आवाज ओर ध्यान देते हुए अनि ने पूछा, उसके सामने से ढेरो चिड़िया उड़कर इधर को ही आ रही थीं।
"सर! लगता है जैसे कोई भारी चीज पानी में गिर गया हो, ये सभी बर्ड्स भी उसी दिशा से उड़कर इधर आ रही हैं जो इस संभावना को सत्यापित करती हैं। वह स्थान यहीं कहीं बिल्कुल पास ही है!" क्रेकर ने एनालिसिस करते हुए कहा।
"धन्यवाद तोड़ू फोड़ू भाई! काला जंगल तो खो गया अब, देखते हैं इधर क्या है!" कहते हुए दोनो उस पथरीले जमीन पर तेजी से आगे बढ़ चले, हालांकि क्रेकर में ऑटो मोड अवेबल था मगर इस टाइम उसका कमांड अनि के हाथों में ही था, अनि बड़ी सफाई के साथ झाड़ियों गड्ढों चट्टानों से गुजरता हुआ उस स्त्रोत के पास पहुँचा जा रहा था जहां से बूंदों के टपकने का स्वर आ रहा था। तभी उसे वहां कोई डूबता हुआ नजर आया, उस व्यक्ति का लहू कुंड के नील हरित जल को लाल करने में जुटा हुआ था।
"ओ भइये, मरना ही था तो पड़ोसन की आँखों में डूबकर मर जाता, ये इस पानी को खराब करना जरूरी था क्या?" क्रेकर से उतरते ही अनि ने पानी में छलांग लगा दिया। जैसे ही उसने उस व्यक्ति का चेहरा देखा उसकी आँखें फ़टी रह गयी, वह पानी में होने के बावजूद भी ऐसे उछला मानो उसके पांव जलते अंगारों पर पड़ गए हों।
"मिस्टर बर्बादी?" बाहर लाकर किनारे पर पटकता हुआ अनि चिल्लाया। "तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी, तुम्हारा तो किसी से चक्कर भी नहीं चल रहा था। शायद मुझसे जुदा होने का गम न सह पाया, आखिर हम हैं ही ऐसी चीज!" अनि ने मुँह बनाया।
"इसके फेफड़ो में पानी जा चुका है सर!" क्रेकर ने उसका ध्यान आकर्षित किया।
"भरने दो, साला खुद को इतने बड़े कुंड में भरने गया था। फेफड़ा क्या दिल किडनी सब में पानी भरने दो!" अनि ने बेपरवाही से हाथ लहराते हुए बोला।
"अगर ये इसी हाल में रहे तो मर जायेंगे सर!" क्रेकर अब गंभीर हो चुका था।
"क्या?" अनि उछला। "अच्छा मर जायेगा। मर ही जायेगा न? कोई बड़ी बात नहीं है रोज सैकड़ो लोग मरते हैं।"
"कहना तो नहीं चाहिए सर पर कहीं आप मिस्टर अरुण से जल तो नहीं रहे हैं?" क्रेकर का मशीनी स्वर अत्यधिक गंभीर हो चुका था।
"क्या? अरे नहीं!" अनि अपने ही स्थान पर उछलने कूदने लगा। "अभी अभी तो पानी से निकाला, जल कैसे सकता हूँ मैं?" अनि ने अरुण को घुरलर देखते हुए कहा।
"सर...?" क्रेकर ने फिर कुछ कहना चाहा।
"फ़िकर न करो प्यारे, हम जानते हैं मिस्टर बर्बादी को, तुमसे तो ज्यादा ही जानते हैं। इस बंदे को मौत भी बिना इसकी इजाजत के नहीं आ सकती, तुम नाहक ही घबरा रहे हो, ये सब तो हमारे बर्बादी साहब रोज बर्बाद करते रहते हैं!" अनि ने गर्व से सीना फुलाकर कहा। "अपना लौंडा कतई सख्त जान है, हम ना भी आते तो यमराम दादा इनको अपना यहां ले जा के अपनी माताखिच्ची कराने की जहमत न उठाते!" अनि ने अरुण को देखकर मुस्कुराते हुए कहा। तभी अरुण ने हल्की सी हरकत की, अनि उसके पास गया, अरुण ने जोर से अपने अंदर का सारा पानी उसपे उड़ेल दिया।
"सुना है पीठ पीछे बहुत बुराई करते हो मेरी!" अरुण ने मुस्कुराते हुए कहा।
'हें! ये बन्दा स्माइल भी करता है क्या?' अनि बस अरुण को देखता रहा, उसके शरीर पर अनेकों ज़ख्म के निशान थे, जो धीरे धीरे अपने आप ही भर रहे थे, उसके कपड़े बुरी तरह फट चुके थे।
"ऐसे क्या देख रहे हो?" अरुण ने शर्माने का नाटक करते हुए बोला।
"यही कि जो बन्दा कभी स्माइल तक नहीं करता था अचानक से इतना बदल कैसे गया?" अनि ने कहा।
"मैं कोई बदला वदला नहीं हूँ। ये भ्रम कभी अपने दिमाग में ना आने देना।" अरुण ने आवेशित स्वर में उग्र होते हुए कहा।
"चाहें कुछ भी हो मिस्टर बर्बादी, आपकी रक्षा के लिए हर बार मुझे ही आना पड़ता है।" अनि ने मुस्कुराकर कहा।
"तो मत आया करो, बुलाया कौन है?" अरुण ने सपाट स्वर में उत्तर दिया।
"खैर छोड़िए मिस्टर बर्बादी! क्रेकर कपड़े हैं?" अनि क्रेकर की ओर मुखातिब हुआ।
"नहीं सर! मैं नहीं पहनता।" क्रेकर ने सपाट स्वर में उत्तर दिया।
"अरे यार तेरे कपड़े नहीं! मेरे कपड़े। मसूरी से इतने कपड़े लिए थे कहां गए?" अनि ने अपने माथे पर हाथ पटकते हुए कहा।
"मुझे क्या पता सर!" क्रेकर ने अनजान बनने का नाटक करते हुए कहा।
"क्रेकर!.." अनि ने ऐसे पुकारा जैसे किसी छोटे बच्चे को पुकार रहा हो।
"बन्द करो यार अपनी ये बकवास!" यह सब देखकर अरुण झल्लाकर चिल्ला पड़ा। क्रेकर ने एक सेक्शन खोला, जहां पर फोल्डेड ब्लैक शर्ट और पैन्ट थी, अनि ने उसकी ओर देखे बिना ही उसे थमा दिया।
"जल्दी करो, मुझे इधर क्या हुआ वो जानना है? और अब तक तो तुम्हें भूख लगी होगी न?" अनि ने अपने पेट पर हाथ फिराते हुए कहा।
अरुण ने कोई जवाब नहीं दिया, थोड़ी देर में उसने कपड़े चेंज कर लिए जो कि अनि के नाप के होने के कारण उसे ज्यादा कसे हुए लग रहे थे।
"अब बताओ क्या हुआ तुम्हारे साथ?" अनि ने उसकी आँखों में आँखे डालकर पूछा।
"वैसे बताना तो नहीं चाहता, पर मैं खुद बहुत उलझा हुआ सा हूँ। बहुत लंबी कहानी है!" अरुण ने कहा।
"चलो कोई ना आराम से खाते पीते बात करेंगे!" कहते हुए अनि क्रेकर पर सवार हुए, अरुण भी उसके पीछे बैठ गया। थोड़ी ही देर में वो जंगल की पथरीली डगर को छोड़कर अध कच्ची-पक्की सड़क पर पहुंच गए थे।
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लगभग एक घण्टे बाद दोनों एक छोटे से ढाबे में खा रहे थे, अरुण का दिल नहीं कर रहा था मगर उसे यह बात समझ में आ ही थी कि इस हाल में वो दुश्मन से नहीं जीत सकता, जोश भले ही कितना अधिक हो अगर होश कायम न रह सके तो वह जोश किस काम का! वैसे भी अनि ने उसे खाने को लेकर बहुत प्रवचन सुना ही दिया था। वे दोनों कोने की टेबल पर बैठे हुए थे, जहां उनपर कोई ध्यान ने देता, अरुण खाते हुए उसे सबकुछ बताते जा रहा था, उसके साथ ही अनि की आँखे फटती जा रही थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये अरुण आखिर है क्या चीज!
"व्हाट?" अनि का सिर चकराने लगा।
"यही सच्चाई है।" अरुण ने शांत स्वर में कहा।
"मतलब तुम कहना चाहते हो कि इन सबको मारने के बाद तुम उसी जगह बेहोश हो गए, तुम्हारे हाथ में जंजीरें बंधी हुई थीं मगर जब होश आया तो तुम कहीं और थे?" अनि ने आंखे फाड़े हैरानी से पूछा।
"हाँ!" अरुण ने एक शब्द में जवाब दिया।
"ये कैसी जगह है यार? वहां तुम्हारे किसी दोस्त के होने के कोई चांस ही नहीं, और दुश्मन तुम्हारे हाथ से हथकड़ी छुड़ा के बाहर छोड़ आये ये तो होने से रहा फिर आखिर हुआ तो हुआ क्या?" अनि अपने सिर को खुजाते हुए पूछा।
"मुझे बस यही बात समझ नहीं आ रही, पर वह जगह थोड़ी अजीब और अच्छी जरूर लगती है।" अरुण ने गिलास उठाकर पानी पीते हुए कहा।
"वो जगह वाकई में अजीब है क्योंकि वो एक्सिस्ट ही नहीं करती! समझ नहीं आता ब्लैंक आखिर इसके पीछे क्यों पड़ा है? क्या है ये?" अनि के माथे पर बल पड़ रहा था।
"व्हाट?" अब चौकने की बारी अरुण की थी। "तुम कहना चाहते हो अभी जिस जगह से हम घूम के आये, मुझे इतनी चोटें मिली उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है!"
"अब तक तो यही सत्य है। ब्लैंक ने जो भी कुछ किया है इस जगह से कुछ हासिल करने के लिए किया है! ये तो तय कि यहां कुछ न कुछ जरुर है, वरना वो जितना पैसे और बम - बारूद खर्च कर रहा है उतने में एक शहर को उड़ा सकता है। आखिर करना क्या चाहता है ये?" अनि गंभीर मुद्रा बनाये हुए था।
"ये काम तुम्हारा है एजेंट! जिस दिन ब्लैंक मेरे हाथ लगेगा, उसकी ऐसी गत बनाऊंगा कि….!" अरुण की आँखों में फिर से खून उतर आया।
"तुम्हें एक बात समझ नहीं आ रही क्या मिस्टर बर्बादी? जो जगह एक्सिस्ट ही नहीं करती, तुम उसके बारे में जाने बिना उससे कैसे भीड़ सकते हो? जरूरी नहीं कि हर बार किस्मत साथ दे, हो सकता है कोई गोली तुम्हारी खोपड़ी को चीरती हुई निकल जाए तो…."
"तुम मुझे मौत से डरा रहे हो?"
"नहीं! मगर सोंचो, अगर तुम्हारे साथ ऐसा हुआ तो फिर तुम्हारा बदला पूरा कौन करेगा, जिसके लिए तुमने ये सारा दर्द, इतने जख्मों को झेला है।" अनि ने उसे समझाते हुए कहा, अरुण निरुत्तर राह गया। "उन मासूमों को मैं अकेले इंसाफ नहीं दिला सकता अरुण! मुझे तुम्हारी मदद चाहिए, और ये बात मैं चीफ के आर्डर के बिना कर रहा हूँ।" अनि ने एक एक।शब्द पर जोर देते हुए कहा। अरुण हैरान था जो बन्दा हर वक़्त उलूल जुलूल हरकते करता रहता था वह इतना सीरियस कैसे हो गया।
"देखो मैं किसी से आर्डर नहीं लेता! पर तुम बताओ मुझे क्या करना है?" अरुण ने खाना खत्म करते हुए कहा।
"मैं तुम्हें आर्डर देने की सोच भी नहीं रहा, तुम्हें वही करना है जो तुम करते आये हो, पर बड़ी सावधानी से और ब्लैंक की नजर से बचकर, क्योंकि उसे अच्छे से पता है कि अब भी अगर कोई उसे रोक सकता है तो वो तुम हो…!" अनि ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा।
"और जब तक मुझे उसका मकसद पता नहीं चल जाता तुम छिपकर ही काम करोगे!" अनि ने उसे एक ब्रेसलेट देते हुए कहा। "हमेशा टच में रहना, पता है तुम अपनी मुसीबत से खुद निबट सकते हो पर इसका डर रहता है कहीं खुद ही कोई मुसीबत खड़ी न कर दो!" कह कर मुस्कुराते हुए अनि बोला, अचानक उनको ब्रेसलेट में हल्का वाइब्रेशन होने लगा, वह वहां से बाहर निकल गया। उसने अपने ब्रेसलेट पर क्लिक किया। "हेलो! सुप्रीम ईगल स्पीकिंग!.. व्हाट? क..क्या? रुको मैं अभी आता हूँ।"
अनि तेजी से क्रेकर पर सवार हुआ, उसकी आंखों में रोमांच के मिश्रित भाव थे, वो तेजी से आगे बढ़ते हुए एक एक गली में मुड़ गया, वहीं ढाबे की गेट पर खड़ा अरुण उसे देख रहा था।
क्रमशः….
𝐆𝐞𝐞𝐭𝐚 𝐠𝐞𝐞𝐭 gт
17-Oct-2023 07:24 PM
वाह! इस भाग में अनि का एक अलग ही रूप दिखाई दिया। एक सीरियस पर्सन! इसमे हमारे दोनों हीरोज एक-दूसरे के प्रति थोड़े नरम पड़ गए और ब्लेंक को हराने के लिये दोस्त भी बन गए एक तरह से! ग्रेट👌👌 पर अनि ने अपनी एजेंट की घड़ी अरुण को दे दी😱 इससे तो कहानी में एक अलग ही मोड़ आ गया।😶 कहानी बेहद रोचक बन चुकी है। देखते है आगे क्या क्या होगा।😃😃
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Fauzi kashaf
02-Dec-2021 10:35 AM
عمدہ
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Zaifi khan
30-Nov-2021 09:11 PM
Bht khoob
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